बहुमत की तरफ तेजी से बढ़ रही है भाजपा: राजनाथ खाप पंचायतें NGO की तरह काम करती हैं: हुड्डा लॉ स्टूडेंट से सामूहिक दुष्कर्म, आरोपीगण गिरफ्त में राहुल को महिलाएं बोलीं-इस बार चुनाव में मजा चखाएंगे राहत...! सीएनजी 14.90 रुपए और पीएनजी 5 रुपए सस्ती तेलंगाना बिल को केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी जनलोकपाल के लिए उप-राज्यपाल की सहमति जरूरी: विशेषज्ञ एक तो..! बेशर्म नाच करने वाले सपाइयों ने फोटोग्राफर को पीटा बिहार में नहीं चल सकती ‘आप’ की झाड़ू: जदयू ‘आप’ भटकी हुई पार्टी, भाजपा पर नहीं नमो पर यकीन: रामदेव नरभक्षी बाघिन ने वृद्ध को बनाया नौवां शिकार दस वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म, आरोपी गिरफ्त से बाहर एक लाख देकर सरकारी जमीन पर राजीव शुक्ल का कब्ज़ा! अरविन्द केजरीवाल को SC ने फिर भेजा नोटिस तेलंगाना मुद्दा: निबटारे हेतु सरकार ने सभी दलों से माँगी मदद हिन्दू-मुस्लिम विकास के दो पहिए: नरेन्द्र मोदी आदिवासी महिलाओं को लुभाने झारखण्ड पहुंचे राहुल गांधी पाक: SC ने मुशर्रफ की जमानती वांरट के खिलाफ याचिका लौटाई जनलोकपाल बिल पर अरविन्द ने उप-राज्यपाल को लिखा पत्र शुक्रवार को सेंसेक्स 66 अंक उछला, निफ्टी में भी बढ़त
जनलोकपाल के लिए उप-राज्यपाल की सहमति जरूरी: विशेषज्ञ
जनलोकपाल के लिए उप-राज्यपाल की सहमति जरूरी: विशेषज्ञ

 

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जनलोकपाल बिल को बनाए जाने को लेकर अपने फैसलें पर अड़े हुए हैं। लेकिंन, यदि संविधान विशेषज्ञों की माने तो जनलोकपाल बिल बिनर उप-राज्यपाल की सहमती के नहीं बन सकती। अरविन्द का कहना है कि, भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए उन्हें ऊपर से किसी की मंजूरी की जरुरत नहीं है। उनके के पास इस बिल को विधानसभा में पास करने के लिए संवैधानिक प्रावधान व नजीर मौजूद हैं।

 

अरविन्द के इस अप्रोच से संविधान विशेषज्ञ, विपक्ष, सरकार को समर्थन दे रही कांग्रेस और वकील सहमत नहीं हैं। ये सब सरकार के इस कदम को असंवैधानिक बता रहे हैं। यदि कानून की माने तो जिस तरह से दिल्ली सरकार जनलोकपाल बिल ला रही है उससे THE GOVERNMENT OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY OF DELHI ACT, 1991 की धाराओं का हनन हो रहा है। CAPITAL TERRITORY OF DELHI ACT, 1991 के तहत जनलोकपाल बिल अथवा किसी प्रकार के बिल को उप-राज्यपाल की सहमती अथवा अनुमति के बिना विधानसभा में नहीं लाया जा सकता। यानि, जनलोकपाल बिल को विधानसभा में लाने के लिए उप-राज्यपाल की सलाह और सहमती जरूरी है।

 

यह अलग बात है कि, उप-राज्यपाल बिल को विधानसभा से पास कराने का सुझाव देते हैं, अपने पास रखते हैं या निर्णय ना लेने की स्थिति में राष्ट्रपति को भेजते हैं। जिस पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति को ही करना होता है। इस एक्ट के अनुसार, संचित निधि, वित्तीय मामलों से जुड़े हुए कुछ ऐसे प्रावधान है जिनके अनुसार बिल को असेंबली में तब तक नहीं लाया जा सकता है जब तक उसे उप-राज्यपाल या राष्ट्रपति की सहमति न मिल जाए।

 

चूंकि, जनलोकपाल बिल में वित्त मामलों की बातें जुडी हुई हैं। इसलिए इसे सीधे विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता। इसके लिए उप-राज्यपाल की सहमती लेनी जरूरे होती है। सरकार को इस मसले पर संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना ही चाहिए। आपको बता दें कि, सॉलिसिटर जरनल मोहन परासरण ने भी कहा है कि, जन लोकपाल बिल को कानून बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की राय जरूरी है, केंद्र की मंजूरी के बिना पास ये बिल गैर कानूनी होगा।

 

जनलोकपाल बिल को लेकर यदि संविधान विशेषज्ञों की मानें तो, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है,ऐसे में केंद्र सरकार को बाईपास करके कोई बिल दिल्ली विधानसभा में सीधे पेश करना संविधान के खिलाफ होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली के मामले में केंद्र का कानून ही सर्वोपरि है। यदि कोई कानून केंद्र और विधानसभा दोनों से पास होता है, तब भी केंद्र का कानून ही मान्य होता है। चूंकि केंद्र सरकार जनलोकपाल बिल पास कर चुकी है, ऐसे में दिल्ली के अपने लोकपाल का कोई मतलब नहीं है। विशेषज्ञों की माने तो विधानसभा लोकायुक्त कानून में ही संशोधन कर सकती है।

 

वहीँ यदि जनलोकपाल बिल को लेकर ‘आप’ नेता प्रशांत भूषन की मानें तो, अनुमति के लेने के लिए वहां कुछ नियम हो सकते हैं लेकिन दिल्ली के जनलोकपाल कानून को प्रारंभिक तौर पर सदन को मान्यता मिल चुकी है दिल्ली की कैबिनेट इसे पास कर चुकी है। ऐसे में दिल्ली के स्तर पर जनलोकपाल में शामिल किए जाने वाले प्रावधानों को केवल इस आधार पर असंवैधानिक ठहराना ठीक नहीं हैं।

 

बात यदि NATIONAL CAPITAL TERRIOTORY ACT 1991 की करें तो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए भारत सरकार के बनाए गए नेशनल कैपिटल टेरटरी एक्ट 1991 के अनुच्छेद 22 के पैरा 1, 2, 3 में शामिल प्रावधानों के मुताबित वित्त  मामलों से जुडे बिल में विशेष प्रावधान हैं। अनु 22 का (1) ऐसे बिल को बगैर उपराज्यपाल की अनुमति के सीधे असेंबली में नहीं लाया जा सकता,ये बिल पहले उपराज्यपाल को भेजा जा सकता है,जिसपर राज्यपाल ही इसे असेंबली में लाए जाने की सलाह दे सकता है या निर्णय न लेने की स्थति में वह इसे सीधे राष्ट्रपति को भेज सकता है। ऐसे बिल में ये प्रावधान निम्नलिखित मामलों में लागू होता है।

 

अ.किसी को आरोपित करने,उत्पीडऩ से संबंधित मामलों में छूट देने या किसी कर में छूट देने से संबंधित।

 

ब.सरकार के वित्तीय दायित्वों के संबंध में।

 

स.राजधानी की संचित निधि में से धन के उपयोग हेतु,राजधानी के लिए संचित निधि को बढ़ाए जाने हेतु

 

द. केंद्र सरकार से वित्तीय कार्यों के लिए संचित निधी में से राशि प्राप्त करने की स्थिति में सहमति देने हेतु

 

अनु 22 पैरा (2)ये बिल किसी पर जुर्माना लगाने,आर्थिक दंड देने,लाइसेंस फीस के संबंध में आरोपित करने, छूट देने से संबंधित मामलों से जुड़ा हो सकता है

Share this post

Submit to Facebook Submit to Google Bookmarks Submit to Technorati Submit to Twitter Submit to LinkedIn