भारत का मंगल मिशन कामयाब
24 Sep 2014

 

नई दिल्ली: भारत का मंगल ग्रह तक पहुंचने का सपना हकीकत में बदल गया है। भारत ने बुधवार को एक नया इतिहास रचते हुए अपने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह की कक्षा में अपना पहला मंगलयान स्थापित कर दिया है। भारत इस कदम के साथ ही मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। यान को कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया सुबह 4:17 बजे शुरू हुई। 7.17 बजे 440 न्यूटन की लिक्विड अपोजी मोटर और आठ छोटे तरल इंजन 24 मिनट के लिए स्टार्ट हुआ। यह यान की गति को 22.1 किमी प्रति सेकंड से कम कर 4.4 किमी प्रति सेकेंड किए। जिससे यान मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया। 249.5 किलो ईधन का इस्तेमाल हुआ। सुबह 7:58 पर प्रक्रिया पूरी हो गई। मिशन पूरा होने की पुष्टि सुबह 8:01 बजे हुई। इसरो ने सोमवार को यान का इंजन चार सेकंड के लिए स्टार्ट किया था जो पूरी तरह सफल रहा। इसके द्वारा यान का परिपथ भी ठीक किया गया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के मौके पर बंगलुरु स्थित इसरो सेंटर में मौजूद थे। उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों समेत पूरे देशवासियों को इस सफलता पर बंधाई दी। वे बुधवार सुबह 6:45 बजे से ही वैज्ञानिकों के साथ बैठकर पूरी प्रक्रिया को देख रहे थे। इसरो के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि मोदी अंतरिक्ष विभाग के प्रमुख हैं और उन्होंने मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा की स्थापना को देखने की इच्छा जताई। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन प्रधानमंत्री मोदी को मंगल मिशन के बारे में पूरी जानकारी दिए। कक्षा में प्रवेश के समय मंगलयान ग्रह की छाया में था और उसे सूर्य की रोशनी नहीं मिली यानी उसके सौर पैनल बेकार थे और यान को बैटरी से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे मंगल की कक्षा में प्रवेश कर गया।
 
दुनियाभर में सबसे सस्ता मंगल मिशन
 
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंचा। यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है। आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, "हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से ज़्यादा है... यह बहुत बड़ी उपलब्धि है..." उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है। अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है कि यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है, हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली। मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की। भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है।
 
मंगल मिशन के खास तथ्य
 
- भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बना।
 
- नासा, ईएसए और रॉसकोसमॉस के बाद इसरो मंगलग्रह की कक्षा में जाने वाला तीसरा संस्थान बना।
 
- मंगल पर कदम रखने वाला भारत एशिया का पहला देश बना गया। इसके साथ ही इस क्लब में क्लब का चौथा सदस्य बन गया। अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ही इस क्लब में शामिल थे।
 
- यह दुनिया का सबसे सस्ता सफल मंगल अभियान है। पीएम मोदी ने लॉन्च के वक्त कहा था कि इस मिशन की कीमत हॉलीवुड मूवी ग्रेविटी की प्रोडेक्शन कीमत से भी कम है।
 
- इसे श्रीहरिकोट के सतिश धवन स्पेस सेंटर से 5 नवंबर 2013 को पीएसएलवी-सी-25 से लॉ्च किया गया था।  450 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने तीन अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। इस मिशन ने 12 फरवरी 2014 को 100 दिन पूरे किए थे।
 
मंगल मिशन के पीछे है इनका दिमाग
 
- के. राधाकृष्णन: इसरो के चेयरमैन और स्पेस डिपार्टमेंट के सेक्रेट्री के पद पर कार्यरत हैं। इस मिशन का नेतृत्व इन्हीं के पास है और इसरो की हर एक एक्टिविटी की जिम्मेदारी इन्हीं के पास है।
 
- एम. अन्नादुरई:  इस मिशन के प्रोग्राम के डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने इसरो 1982 में ज्वाइन किया था और कई प्रोजेक्टों का नेतृत्व किया है। इनके पास बजट मैनेजमेंट, शैड्यूल और संसाधनों की जिम्मेदारी है। ये चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्ट भी रहे हैं।
 
- एस. रामाकृष्णन:  विक्रमसाराबाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर हैं और लॉन्च अथोरिजन बोर्ड के सदस्य हैं। उन्होंने 1972 में इसरो ज्वाइन किया था और और पीएसएलवी को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
 
- एसके शिवकुमार:  इसरो सैटेलाइट सेंटर के डायरेक्टर हैं। इन्होंने 1976 में इसरो ज्वाइन किया था और इनका कई भारतीय सैटेलाइट मिशनों में योगदान रहा है।
 
- इसके अलावा पी. कुंहीकृष्णन, चंद्रराथन, एएस किरण कुमार, एमवाईएस प्रसाद, एस अरूणन, बी जयाकुमार, एमएस पन्नीरसेल्वम, वी केशव राजू, वी कोटेश्वर राव का भी इस मिशन में अहम योगदान रहा।
 
मानव मिशन को लगेंगे पंख
 
मंगल मिशन के सफलता के करीब पहुंचने के बाद भारत अब चांद पर रोबोट उतारने और अंतरिक्ष में मानव भेजने के कार्यक्रमों पर तेजी से आगे बढ़ेगा। मिशन मंगल में इसरो ने अभी तक अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है। माना जा रहा है कि इसके बाद इसरो के लिए चंद्रयान-2 और अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं रह गया है। लाल ग्रह के करीब पहुंचने के बाद मंगलयान के इंजन को चालू करने का परीक्षण भी सफल रहा है। इसरो के लिए यह सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि करीब तीन सौ दिन से बंद पड़े इंजन को 21.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी (रेडियो डिस्टेंस) से कमांड देकर चालू करना था। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक अब नए अभियानों के लिए कमर कसेंगे।
 
चंद्रयान-2 के निर्माण का काम प्रगति पर 
अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, मंगल मिशन के बाद इसरो का अगला कदम चांद पर रोबोट उतारने का है। चंद्रयान-2 का निर्माण प्रगति पर है। लैंडर और रोवर के परीक्षण शुरू हो गए हैं। चंद्रयान-2 चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा और लैंडर की मदद से एक रोबोटनुमा उपकरण रोवर चांद की सतह पर उतरकर आंकड़े एकत्र करेगा।
 
2017 के बाद अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने पर जोर 
अंतरिक्ष विभाग के सूत्रों के अनुसार मंगलयान की सफलता से अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत का आत्मविश्वास बढ़ा है। इसलिए अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की योजना पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे। इसके लिए इसरो ने पहले ही जरूरी अध्ययन कर लिए हैं। 2017 के बाद इस मिशन पर कार्य शुरू होगा और 2020 में इसरो अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजेगा। पहले चरण में इन्हें करीब 500 किलोमीटर की ही दूरी तक धरती की निचली कक्षा में मानव मिशन भेजा जाएगा और उसके बाद यह दायरा बढ़ाया जाएगा। इस योजना पर करीब 12 हजार करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है।
 
सूर्य का अध्ययन करेगा आदित्य-1
इसके साथ ही इसरो सूर्य के इर्द-गिर्द भी अपना एक उपग्रह आदित्य-1 भेजने की योजना बना रहा है। इसका मकसद सौर ऊर्जा और सौर हवाओं पर अध्ययन करना है। इस मिशन में भी अब तेजी आएगी।
 
कक्षा में पहुंचते ही चालू हुए उपकरण
 
लिमन अल्फा फोटोमीटर (एलएपी)
यह उपकरण मंगल के ऊपरी वायुमंडल में ड्यूटेरियम एवं हाइड्रोजन कणों की किसी भी रूप में मौजूदगी या इनकी किसी प्रक्रिया का पता लगाने में मदद करेगा। उपकरण में लगे अत्याधुनिक लेंस ऐसे कणों को खोज कर मुख्य नियंत्रण कक्ष को संदेश भेजते हैं।
 
मीथेन सेंसर फॉर मार्स (एमएसएम)
यह उपकरण विशेष रूप से मीथेन गैस का पता लगाने के लिए है। मीथेन जो कार्बन के एक और हाइड्रोजन के चार अणुओं का मिश्रण है, उसका अरबवां हिस्सा भी यदि मंगल के वातावरण में मौजूद हुआ तो यह उपकरण उसका पता लगा लेगा।
 
मार्स एक्सोफेरिक कंपोजिसन एक्सोप्लोरर (एमईएनसीए)
यह उपकरण यह पता लगाएगा कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल की प्राकृतिक संरचना कैसी है। यदि वहां हाइड्रोजन, मीथेन आदि नहीं भी है तो क्या है। मूलत यह मंगल पर मौजूद किसी भी प्राकृतिक संघटकों का पता लगाने का कार्य करेगा।
 
मार्स कलर कैमरा (एमसीसी)
सतह का मानचित्रण करेगा। इस कैमरा से अधिकतम 50 गुणा 50 किमी दायरे के चित्र लिए जा सकते हैं। जबकि न्यूनतम 25 मीटर के दायरे में इसका किसी बिन्दु पर फोकस करके भी यह कैमरा चित्र ले सकता है। इस प्रकार सतह की स्थिति को समझने में मदद मिलेगी।
 
टीआईआर इमेजिंग स्पेक्टोमीटर
मंगल की सतह पर खनिजों का पता लगाना। उपकरण से निकलने वाली  खास किरणें मंगल की सतह में गहराई तक जाकर यह पता लगाएंगी कि वहां किस किस्म के खनिज भंडार छुपे हो सकते हैं।
 
मंगलयान के कुछ अहम दिन
 
05 नवंबर 2013 को प्रक्षेपित
 
01 दिसंबर को पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर
 
11 दिसंबर 2013 को पहली बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
 
11 जून 2014 को दूसरी बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
 
14 सितंबर को अंतरिक्षयान की कमांड अपलोड की गईं
 
22 सितंबर को मंगल के प्रभाव क्षेत्र में प्रवेश करेगा यान
 
24 सितंबर को मंगल की कक्षा में सुबह 7.30 बजे प्रवेश
 
मिशन की सफलता से बढ़ेगी भारत की धाक
 
इससे भारत ने सुदूर अंतरिक्ष में पहुंचने की अपनी क्षमता हासिल की है। अभी तक भारत की उपस्थिति निचले अंतरिक्ष में ही पहुंचने तक सीमित थी।
 
भविष्य में कभी मंगल पर मीथेन, हाइड्रोजन और अन्य खनिजों के भंडार मिलते हैं तो उस पर अमेरिका, रूस, यूरोप के साथ भारत की भी दावेदारी होगी।
 
युवा वैज्ञानिकों में यह मिशन अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में जबरदस्त उत्साह पैदा करेगा। बच्चों में विज्ञान पढ़ने की ललक बढ़ेगी और शोध पर भी ध्यान बढ़ेगा।
 
देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास होगा। भारत विदेशी उपग्रह बनाने और प्रक्षेपण का कार्य तेज करेगा। इससे इसरो की आय भी बढ़ेगी।
 
अगले दो-चार सौ सालों में कभी मंगल पर आबादी बसने की राह खुली तो भारत के लिए वहां अपनी कालोनियां बसाना संभव होगा।
 
मैवेन भी मंगल की कक्षा में पहुंचा
 
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मंगल ग्रह का एक और अभियान सफल रहा। सोमवार की सुबह मंगल की कक्षा में प्रवेश के साथ ही नासा के अंतरिक्ष यान मैवेन ने ग्रह का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। यह मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने वाला अपने किस्म का पहला यान होगा। मैवेन की वैज्ञानिक टीम के जॉन क्लार्क ने कहा, मंगल एक ठंडी जगह है, परंतु वहां ज्यादा वायुमंडल नहीं है। वहां वायुमंडल, हमारे वायुमंडल से करीब आधा है जिसमें हम अभी सांस ले रहे हैं।
 
छह थ्रस्टर दागे गए 
मार्स एटमॉस्फीयर एंड वॉलेटाइल एवोल्यूशन(मैवेन) के छह रॉकेट थ्रस्टर दागकर 5.72 किमी प्रति सेकेंड से 4.47 किमी प्रति सेकेंड की गति पर लाया गया। नासा के गोडार्ड स्पेस सेंटर में विज्ञान क्षेत्र के उप निदेशक कोलीन हार्टमैन ने कहा कि मैवेन पता लगाएगा कि कैसे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल से सौर हवाएं परमाणुओं और अणुओं को उड़ा ले गईं।
 
पता लगाएगा कैसे गायब हुआ पानी 
मैवेन लाल ग्रह की जलवायु में आए परिवर्तनों का अध्ययन करने गया है। यह उपग्रह तथ्य जुटाएगा कि अरबों साल पहले मंगल की सतह पर मौजूद पानी और कार्बन डाइआक्साइड का क्या हुआ। मैवेन पता लगाएगा कि किस प्रकार मंगल समय बीतने के साथ गर्म और नमी के वातावरण से ठंडे और शुष्क जलवायु वाले ग्रह में बदला।
 
खोजी दल का सातवां सदस्य होगा मंगलयान
मैवेन के पहले नासा के दो अन्य आर्बिटर, दो रोवर और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एक आर्बिटर मंगल की जलवायु, वायुमंडल और संरचना की थाह में लेने में जुटे हैं। मंगलयान इस खोजी दल का सातवां सदस्य होगा। नासा का क्यूरॉसिटी रोवर अभी मंगल के गेल क्रेटर और माउंट शार्प की चट्टानों की संरचना का अध्ययन कर रहा है।
 
मैवेन बनाम मंगलयान
 
नासा का मैवेन
18 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 04 दिन की यात्रा
71.1 करोड़ किमी यात्रा
33 मिनट तक हुआ इंजन परीक्षण
7.55 बजे (22 सितंबर) को कक्षा में पहुंचा
01 वर्ष मिशन की अवधि
4026 करोड़ रुपये लागत
386 गुना 44600 किमी की कक्षा में घूमेगा
 
इसरो का मंगलयान
05 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 19 दिन यात्रा
66.6 करोड़ किमी यात्रा
24 मिनट तक होगा इंजन परीक्षण
7.30 बजे (बुधवार सुबह) कक्षा में पहुंचा
06 माह मिशन की अवधि
450 करोड़ रुपये लागत
372 गुना 80 हजार किमी की कक्षा में घूमेगा
 
मंगल पर मानव को भेजने का अहम पड़ाव
अगर मैवेन कभी मंगल पर कभी मौजूद रहे जलस्रोतों के बारे में आंकड़े जुटा पाया तो यह इस ग्रह पर मानव को भेजने के मिशन की दिशा में अहम पड़ाव साबित होगा। इससे उन परिस्थितियों और विकल्पों को खोजने में मदद मिलेगी कि मानव वहां कैसे खुद को जिंदा रख सकता है। नासा ने वर्ष 2030 में इस ग्रह पर मानव को भेजने की योजना बनाई है।
 
लाल ग्रह की कैसे  होगी निगरानी
 
- बंगलुरु के बयालू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से नजर
- नासा के फ्लोरिडा के जेट प्रोपल्शन सेंटर के वैज्ञानिक रखेंगे नजर
- कैनबरा और मैड्रिड में नासा के डीप स्पेस नेटवर्क से रहेगा संपर्क
 
आखिरी क्षण बेहद अहम
 
- कक्षा में प्रवेश करते वक्त दूरी, गति की सटीक स्थित जानना अहम
- मंगलयान के बारे में इसरो और नासा के आंकड़ों एक जैसे पाए गए
 
नासा ने शुरू की 20 हजार डॉलर की प्रतियोगिता
मंगल के वातावरण में प्रवेश करने वाले अंतरिक्ष यान को जरूरी वजन संतुलन मुहैया कराने में मददगार विज्ञान और तकनीक के छोटे उपकरणों का खाका तैयार करने वालों के लिए नासा ने 20,000 डॉलर का इनाम घोषित किया है। इसके लिए प्रविष्टियां 21 नवंबर तक भेजी जा सकेंगी। विजेता की घोषणा जनवरी 2015 के मध्य में होगी।

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