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मुजफ्फरनगर दंगा: एसपी सरकार का यू-टर्न!

 

मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर दंगे में अल्पसंख्यक नेताओं के उपर लगे केस हटाने से प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार ने इंकार कर दिया है| उन्होंने बताया है कि, सरकार की ओर से ऐसा कोई खत मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी को नहीं लिखा गया| सूत्रों के हवाले से खबर आ रही थी कि, यूपी सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िलाधिकारी को ख़त लिखा है जिसमें पूछा गया है कि, क्या सरकार दंगा आरोपियों के केस वापस ले सकती है|
 
दरअसल बीते साल 30 अगस्त को मुज़फ़्फ़रनगर के मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े खालापार में हुई पंचायत में भड़काऊ भाषण के मामले में बीएसपी सांसद कादिर राणा, बीएसपी विधायक नूरसलीम राणा, जमील अहमद कांग्रेस के पूर्व मंत्री सईददुज्जमा सहित 16 लोगों के ख़िलाफ़ नगर कोतवाली में गंभीर धाराओ में मुकदमे दर्ज गए थे,  दंगो के बाद बीएसपी विधायक नूरसलीम राणा, जमील अहमद, सांसद कादिर राणा सहित कई लोगों ने कोर्ट में सरेंडर कर ज़मानत हासिल कर ली थी| वहीं यूपी सरकार के ख़त की भनक लगते ही सूबे की सियासत भी गरमा गई है|
 
बीजेपी ने इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है तो, क़ानून के जानकारों की मानें तो जब इस मामले में कोई चार्जशीट ही दाखिल नहीं हुई है तो ऐसी परिस्थितियों में सूबे की सरकार का ख़त में दिया प्रस्ताव कोई महत्व ही नहीं रखता है| हालांकि, राजनीति के जानकार इसे 2014 लोकसभा चुनाव में विशेष वर्ग का समर्थन हासिल करने और वोट बटोरने के लिए यूपी सरकार की अल्पसंख्यकों के नाम पर की जाने वाली राजनीति बता रहे हैं|
 
आग लगी, घर जले, पलक झपकते ही खुशियां मातम में तबदील हो गईं और ना जाने कितने ही परिवार बेघर हो गए| आज भी कड़कड़ाती ठण्ड में राहत शिविरों में रह रहे हैं लोग| लेकिन मुजफ्फरनगर दंगा मामले में शुरूआत से अभी तक राजनीति जमकर हो रही है| हिंसा को लेकर बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी और सूबे की समाजवादी पार्टी का दामन दागदार हुआ| सभी पार्टियों ने एक दूसरे पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया| लेकिन जख्मों पर राजनीति करने वाले नेता आखिर कब सुधरेंगे और कब भाई-भाई को लड़ाकर उनकी नफरत की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेकेंगे ये बात कोई नहीं जानता|

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