UPSC के छात्रों का संसद के बाहर प्रदर्शन
नई दिल्ली: वैसे तो यूपीएससी में अनेक प्रकार की कमियां मिलती आ रही हैं और यह अब भी जारी है। कभी सिलेबस में बदलाव कर दिए जाते हैं तो कभी कुछ और गड़बड़ी। छात्र विरोध में आए दिन कही न कही सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं लेकिन इस बार आक्रोशित छात्रों ने प्रदर्शन करने का अड्डा बनाया संसद को। फिर क्या था पहले से ही प्लान किए छात्र एक साथ संसद की तरफ कूच कर दिए और संसद के अन्दर भी घुसने की कोशिस की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए उन्हें पुलिस बल द्वारा रोका गया और उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
प्रदर्शन कर रहे छात्रों का आरोप है कि यूपीएससी के सिलेबस में बदलाव किए गए है। छात्रो का कहना है कि वह सिविल सर्विस की परीक्षा के मौके बढ़ाने की भी मांग कर रहे है लेकिन उनकी मांगी अभी तक नहीं मानी गई है। छात्रों ने जानकारी दी कि वह पिछले पांच महीनो से इसके लिए जगह-जगह आन्दोलन कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहें है। छात्रों के मुताबिक उनकी दो मांगे हैं। एक, 2011-13 में यूपीएससी के पैटर्न में बदलाव से प्रभावित छात्रों को 1979 की तर्ज पर तीन अतिरिक्त प्रयास और आयु सीमा में छूट मिले। दूसरा प्रारंभिक परीक्षा के दूसरे पेपर में ऑप्शनल के स्थान पर जोड़े गए CSAT को क्वालिफाइंग बनाया जाए।
सबसे बड़ी केंद्र के लिए शर्म की बात यह है कि छात्रों ने इस बावत केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी समेत कई अन्य नेताओं को भी अपनी समस्याओं से अवगत करा चुके है लेकिन उस पर किसी भी नेता अथवा जनप्रतिनिधि द्वारा किसी प्रकार का कोई विचार नहीं किया गया उल्टा मामले पर ताल-मटोल किया जाता रहा है। कुछ छात्रों ने कहा कि वह केंद्र तक अपनी बात पहुचाने और उनकी समस्याओं पर विचार करने के लिए संसद को घेरने का ही रास्ता उचित लगा। छात्रों का कहना था कि उन्हें भी अच्छा नहीं लगता कि उन्हें हमेशा पुलिस की लाठियां खाने को मिले अथवा उनके ऊपर शांति भंग करने जैसे आरोप लगे लेकिन वह ऐसा करने पर विवास हो चुके हैं।
दूसरी तरफ पुलिस भी छात्रों पर मेहरबान हुई। वह प्रदर्शन कर रहें छात्रों पर जमकर लाठियां भाजती रहीं जिसमे दर्जनों छात्रों को चोटें भी आई हैं। पुलिस ने तो उन्हें किसी प्रकार का प्रशासनिक सहयोग दिया नहीं लेकिन लाठियां जरूर खिलाती रही। चोटिल छात्रों के दोस्तों ने ही उन्हें ईलाज हेतु अस्पताल में दाखिल कराया है। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि इन छात्रों की सुनने वाला कोई है भी अथवा नहीं? पांच-पांच महीने से छात्र अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहें है एक तरफ भारत सरकार कहती है कि ‘सब पढ़े और सब बढे’ दूसरी तरफ पढने वाले छात्रों पर पुलिस लाठियां भाजती है। कैसा शासन और कैसा प्रशासन है? बात कुछ समझ में नहीं आ रही है।
सुरक्षा की खुली पोल:
पुलिस कितनी मुस्तैद रहती है इस बात का भी नमूना छात्रों के चलते देखने को मिल गया है। संसद जैसी जगह पर कुछ प्रदर्शनकारी आते है और ताबड़तोड़ आगे बढ़ते हुए लगभग संसद तक पहुँच जाते है और पुलिस ....! यानि यह कहा जा सकता है कि पुलिस अब लापरवाह हो चुकी है। इस बात का अनुमान आप इस तरह लगा सकते हैं कि संसद जैसी जगह पर कोई भी आसानी से जा सकता है यानि जनप्रतिनिधियों की रक्षा भी पुलिस नहीं कर सकती तो आम आदमी के घर की रक्षा क्या करेगी? आम आदमी की रक्षा क्या करेगी? जो पुलिस संसद की रक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती उस पुलिस से आम आदमी की सुरक्षा कैसे की जा सकती है इस बात का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।