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छत्तीसगढ़ में बीते सात वर्षों के दौरान नक्सलियों के कहर पर एक नजर
11 Mar 2014

 

नई दिल्ली/रायपुर: वैसे तो देश के कई राज्य नक्सल प्रभावित राज्यों में आते हैं। इनकी संख्या दस से भी ज्यादा है। लेकिन, यदि अब तक के सबसे ज्यादा नक्सली हमलों की बात करते हैं तो इनमे छत्तीसगढ़ राज्य भी लगभग शीर्ष पर ही आता है। हालांकि, बिहार, झारखण्ड भी अति नक्सला प्रभावित राज्यों में आते हैं लेकिन, छत्तीसगढ़ भी इनसे कम नहीं है। आइए एक नजर डालते हैं छत्तीसगढ़ में बीते करीब 7 वर्षों के दौरान हुए नक्सली हमले पर। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बीते साथ वर्षों में नक्सलियों ने 270 लोगों को (जिनमे सुरक्षाकर्मी, जनप्रतिनिधि, पत्रकार शामिल हैं) की हत्या कर दी है। ये वो आकड़े हैं जिनकी सरकार द्वारा पुष्टि की गई है और जो नक्सली अक्सर वारदात करते रहते हैं उनकी गिनती ही नहीं है।
 
जुलाई 2007 से और अब तक आकड़ों पर यदि नजर डालें तो इस दौरान भारी संख्या में सुरक्षा कर्मियों की मौत हुई है। 17 जुलाई, 2007 को दंतेवाड़ा में करीब 800 हथियारबंद नक्सलियों ने बड़ा हमला किया था। इसमें 25 लोगों के मरने और 32 लोगों के घायल होने की सरकार ने पुष्टि की थी जबकि, यह संख्या ज्यादा दी। उसके बाद मार्च 2008 में सांसद बलीराम कश्यप के काफिले पर नक्सलियों ने हमला किया फिर मार्च महीने में ही वन मंत्री विक्रम उसेंडी के काफिले पर नक्सलियों ने हमला किया। हालांकि, इन दोनों हमलों में किसी के हताहत होने की पुष्टि नहीं हुई थी।
 
जुलाई, 2009 में राजनांदगांव में नक्सलियों ने एक बार फिर से सुरक्षाकर्मियों को अपना निशाना बनाया। इस बार नक्सलियों ने बारूदी सुरंग का प्रयोग किया था। जिसमे 28 सुरक्षार्मियों की मारनी की पुष्टि हुई थी। उसके बाद 26 सितंबर, 2009 को भाजपा सांसद बलीराम कश्यप की जगदलपुर में नक्सलियों ने हत्या कर दी थी सांसद के कुछ सहयोगियों को गंभीर रूप से चोटें भी आई थी। उसके बाद अप्रैल 2010 में ताड़मेटला में नक्सलियों ने एक बार फिर से सुरक्षाकर्मियों को अपना निशाना बनाया। इस बार नक्सलियों ने 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी थी।
 
उसके बाद फिर से 17 मई 2010 को नक्सलियों ने पुलिस के शीर्ष अधिकारियों को अपना निशाना बनाया। इस नक्सली हमले में 14 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 35 लोग मारे गए। इसके अलावा 29 जून, 2010 छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में नक्सलियों ने 26 सीआरपीएफ के जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद जुलाई, 2011 को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के काफिले पर हमला। फिर अक्टूबर 2011 को विधायक डमरूधर पुजारी के निवास पर धावा। अक्टूबर में ही नक्सलियों ने बस्तर में छह सुरक्षाकर्मियों की हत्या की थी।
 
एक बार फिर से जुलाई 2011 में पुलिसकर्मियों पर नक्सलियों का कहर बरपा। इस बार दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने 10 पुलिसकर्मियों की हत्या की थी। फिर जनवरी, 2012 दंतेवाड़ा में विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमला। -अप्रैल, 2012 में संसदीय सचिव महेश गागड़ा के काफिले पर हमला। मई, 2012 में महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंड़ी के बंगले में हमला। नवंबर, 2012 में पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा के बुलेटफ्रूफ वाहन पर हमला। हालांकि, इन हमलों के दौरान किसी के हताहत होने की खबर नहीं मिली थी।
 
12 फरवरी 2013 को नेमीचंद जैन नामक एक पत्रकार समेत दो की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। उसके बाद 7 अप्रैल 2013 को नक्सलियों ने 2 पुलिसकर्मियों की कांकेर में हत्या कर दी थी। नक्सलियों ने 12 मई, 2013: सुकमा में दूरदर्शन केंद्र पर हमला। इस हमले में चार जवान शहीद हुए थे जबकि, कम से कम 10 जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे।
 
25 मई 2013 एक ऐसी तारीख जिसे याद करते ही हृदय दहल जाता है। इस बार नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर उस समय हमला किया था जब वह रैली में शामिल होकर सुकमा के जंगलों के बीच से गुजर रहे थे। इस हमले में कांग्रेस चार दिग्गज नेताओं समेत लगभग 30 कार्यकर्ताओं की नक्सलियों ने निर्मम हत्या कर दी थी। हमले में कांग्रेस के शीर्ष नेता महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार और नन्द कुमार पटेल  की मौके पर ही मौत हो गई थी जबकि, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल की कुछ दिनों बाद ईलाज के दौरान मौत हुई थी।
 
उसके बाद 28 फरवरी 2014 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में सुबह हुए नक्सली हमले में पुलिस के पांच जवान शहीद हो गए और चार अन्य घायल हुए। अब आज एक बार फिर से नक्सलियों का कहर देखने को मिला। आज फिर से सुकमा जिले में ही नक्सलियों ने 20 सीआरपीएफ के जवानों को मौत के घाट उतार दिया है।

11 Mar 2014

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